कबीर की प्रसिद्ध पंक्तियां kabir ke Dohe prasiddh Panktiya UP TGT PGT HINDI 2022-23 kabeer ke kathan

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कबीर की प्रसिद्ध पंक्तियाँ

(१) दसरथ सुत तिहुँ लोक बखाना ।

      राम नाम का मरम है आना ।।

(२) आपुहि देवा आपुहि पाती ।

      आपुहि कुल आपुहि है जाती ।।

(३) तत्त्व मसि इनके उपदेसा ।

      ई उपनीसद कहैं संदेसा ।।

      जागबलिक औ जनक संवादा।

      दत्तात्रेय वहै रस स्वादा।।’

(४) गहना एक कनक ते गहना, इन मह भाव न दूजा ।   

     कहन सुनन कोई दुइ करि पापिन,

     इक मिजाज, इक पूजा ।।

(५) सूर समाना चंद में दहूँ किया घर एक ।

      मन का चिंता भया, कछू पुरबिल लेख ||

      आकासे मुखि तब औंधा कुआं पाताले पनिहारि ।

      ताका पाणी को हंसा पीवै बिरला आदि बिचारी ॥

(६) दिन भर रोजा रहत हैं, राति हनत हैं गाय

     यह तो खून वह बंदगी, कैसे खुसी खुदाय

(७) नैया बिच नदिया डूबति जाय ।

     मुझको तूं क्या ढूँढ़े बंदे मैं तो तेरे पास में।

(८) है कोई गुरुज्ञानी जगत महँ उलटि बेद बूझै ।

     पानी महँ पावक बरै, अंधहि आँखिन्ह सूझै ।।

     गाय तो नाहर को धरि खायो, हरिता खायो चीता ।

(९) साई के संग सासुर आई ।

     संग न सूती, स्वाद न जाना,

     गा जीवन सपने की नाई ।।

(१०) हौ बलि कब देखौंगी तोहि ।

       अहनिस आतुर दरसन कारनि ऐसी व्यापी मोहि

(११) ‘मसि कागद छुयौ नहीं, कलम गयौ नहिं हाथ । ‘

(१२) ‘तुम जिन जानो गीत है, यह निज ब्रह्म- विचार ।

(१३) ‘मैं कहता हूँ आखिन देखी, तू कहता कागद की लेखी ।’

(१४) ‘कवि कवीनै कविता मूए, कापड़ी केदारौ जाइ ।   

        केस लूंचि मुए, वरतिया, इनमें किनहू न पाइ ।।

(१५) अगिन जो लागी नीर में कंदो जलिया झारि ।

        उतर दक्षिण के पंडिता रहे बिचारि बिचारि ।

(१६) पॉडे कौन कुमति तोहि लागी

        कसरे मुल्ला बाँग नेवाजा

(१७) हरि जननी मैं बालक तोरा

(१८) चलन चलन सब लोग कहत है, न जानो बैंकुंठ कहाँ ?

(१९) कुसल कुसल ही पूछते कुसल रहा न कोय ।

        जरा मुई न भय मुआ कुसल कहाँ ते होय ।।

(२०) सतगुर हमसूँ रीझकर, कह्या एक परसंग ।

       बादर बरसा प्रेम का, भीजी गया सब अंग ।।

(२१) ‘पूरब जनम हम बाम्हन होते, ओछे करम तप हीना

       रामदेव की सेवा चूका पकरि जुलाहा कीना । ‘

(२२) सूरा सो पहिचानिये लरै दीन के हेत ।

       पुरजा पुरजा कटि मरै कबहुँ न छाँड़े खेत ।।

(२३) मूस तो मंजार खायौ स्यारि खायो स्वानां

(२४) संतो अचरज एक भौ भारी

        पुत्र धरल महतारी ।

(२५) जे तू बाभन बभनीं जाया।

तो आंन बाट होइ काहे न आया ।।

(२६) हरि मोरा पिउ मैं हरि की बहुरिया क्या ?

(२७) हमनं है इश्क मस्ताना हमनको होशियारी क्या ?

       रहै आजाद या जग में, हमन दुनियाँ से यारी क्या?

(२८) साई के सब जीव हैं कीरी कुंजर दोय

(२९) निसदिन खेलत रही सखियन संग, मोहि बड़ा डर लागे’

(३०) रस गगन गुफा अजर झरै

(३१) माया महा ठगनी हम जानी

(३२) जाति न पूछो साधु की पूछि लीजिए ज्ञान

(३३) मोरि चुनरी में परि गयो दाग पिया

(३४) मेरा तेरा मनुआ कैसे एक होई रे

(३५) नैना अंतरि जव तू, ज्यूं तो नैन झंपेऊ

       पलकों की चिक डारिकै, पिया को लिया रिझाय ।

(३६) भीजे चुनरिया प्रेम रस बूंदन

(३७) गुरु मोहि घुटिया अजर पियाई

(३८) हमारे घर आये राजा राम भरतार

(३९) पीछे लागा जाई था, लोकवेद के साधि

       आगे थै सतगुरु मिल्या, दीपक दीया हाथि।

(४०) तोको पीव मिलेंगे घूंघट के पट खोल रे ।

(४१) सपने में सांई मिले, सोवत लिये जगाय

(४२) संतो आई ज्ञान की आंधी

(४३) पूजा – सेवा – नेम – व्रत, गुडियन का-सा खेल

(४४) गुरु गोविंद दोऊ खड़े हाके लांगू पाय ।

 

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