सूरदास की प्रमुख पंक्तियां एवं कथन Surdas ki Panktiya ev kathan UP TGT PGT EXAM 2022, Hindi sahitya

सूरदास की प्रमुख पंक्तियां एवं कथन Surdas Panktiya ev kathan UP TGT PGT EXAM 2022, Hindi sahitya

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सूरदास की प्रसिद्ध पंक्तियाँ

(1.)नंद जू मेरे मन आनंद भयो, हौ गोवर्धन ते आयो ।   

     तुम्हरे पुत्र भयो, मैं सुनि कै अति आतुर उठि धायो ।

(२) है हरि भजन को परमान ।

     नीच पावै ऊँच पदवी, बाजते नीसान।

(३) काहे को आरि करत मेरे मोहन । यो तुम आँगन लोटी ।

     जो माँगहु सो देहुँ मनोहर, यह बात तेरी खोटी ।

(४) शोभित कर नवनीत लिए।

      घुटरुन चलन रेनु तन मंडित, मुख दधि लेप किए।

(५) सिखवत जसोदा चलन मैया।

     अरबराय कर पानि गहावति, डगमगाय धरै पैयौ ।

(६) पाहुनि करि दै तनक मह्यौ ।

     आरि करै मनमोहन मेरो, अंचल आनि गह्यो

(७) मैया कबहिं बढ़ेगी चोटी !

      कितिक बार मोहिं दूध पियत भइ, यह अजहूँ है छोटी।

(८) खेलत में को काको गोसैयाँ ?

(९) धेनु दुहत अति ही रति बाढ़ी।

      एक धार दोहनि पहुँचावत, अक धार जहँ प्यारी ठाढ़ी।

(१०) देखि री ! हरि के चंचल नैन ।

       खंजन मीन मूंगज चपलाई नहिं पटतर एक सैन

(११) मेरे नैना बिरह की बेल बई ।

       सींचत नैन नीर के, सजनी! मूल पतार गई।

(१२) मुरली तऊ गोपालहिं भावति सुन री सखी!

       जदपि नंदनंदहि नाना भांति नचावति ।

(१३) एहि बेरियाँ बन तें आवते ।

       दूरहिं ते वह बेनु, अधर धरि बारंबार बजावते ।।

(१४) मधुबन तुम कत रहत हरे ?

       विरह वियोग श्यामसुंदर के ठाढ़े क्यों न जरे ?

(24) ऊधौ ! तुम अपनों जतन करौ ।

      हित की कहत कुहित की लागे, किन बेकाज ररौ ?

 (१६) निर्गुन कौन देस को बासी ?

         मधुकर हंसि समुझाय, सौह दै बूझति सांच, न हाँसी ।

(१७) सुनिहै कथा कौन निर्गुन की, रचि पचि बात

      सगुन सुमेरु प्रगट देखियत, तुम तृन की ओर दुरावत ।

(१८) रेख न रूप, बरन जाके नहि ताको हमैं बतावत ।    

       अपनी कहौं, दरस ऐसो को तुम कबहुँ हौ पावत ?

(१९) ऊनो कर्म कियो मातुल बधि, मदिरा मत्त प्रमाद।   

        सूर स्याम एते अवगुन में निर्गुन तें अति स्वाद ।।

(२०) बूझत स्याम कौन तू गोरी ।

       कहाँ रहति, काकी है बेटी, देखी नहीं कहूँ ब्रज-खोरी ।।

(२१) मानौ माई घन घन अंतर दामिनी ।

       घन दामिनी घन अंतर, सोभित हरि ब्रज भानिनी ।

(२२) प्रभु हौं सब पतितन को टीक

(२३) हौं हरि सब पतितन कौ नायक

(२४) रूपरेख – गुन-जाति- जुगति – बिनु निरालंब कित धावै ।

       सब बिधि अगम विचारहिं तातै सूर – सगुन पद गावै ।।

(२५) तजि सेवा बैकुंठनाथ की, नीच नरन कै संग रहै ।

      जिनको मुख देखत दुख उपजत तिनकौं राजा-राम कहैं । ।

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(२६) जसोदा हरि पालनै झुलावै ।

        हलरावै, दुलराइ, मल्हावै, जोइ सोइ कछु गावै

 (२७) मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायौ ।

        मोसों कहत मोल कौ लीन्हौ, तू जसुमति कब जायौ ।।

(२८) फटि न गई, वज्र की छाती कत ये सहे।

(२९) नंद ब्रज लीजै ठोंकि बजाय

(30.) औचक ही देखी राधा, नैन विसाल भाल दिए रोरी     

         नील बसन फरिया कटि पहिरे बेनी पीठि रलति झक झोरी ।।

(३१) लरिकाई कौ प्रेम कहौ अलि कैसे करि छूटत ।

(३२) हरि है राजनीति पढ़ि आए ।

        समुझी बात कहत मधुकर जो? समाचार कुछ पाए ?

(३३) सूर मिलौ मन जाहि-जाहि सों ताको कहा करै काजी !

(३४) ब्याहो लाख धरौ दस कूबरि अंतहि कान्ह हमारे ।

 (३५) संदेसो देवकी सों कहियो जाय

(३९) जँह – जँह रहौ, राज करौ तहँ तहँ लेहु कोटि सिर भार ।

       यह असीस हम देति सूर पुनुन्हात खसै नहि बार।

(३७) निरखत अंक स्याम सुंदर के बार लावति छाती ।   

      लोचन जल कागज मसि मिलि कै है गई स्म – स्याम की पाती ।

(३८) बिहँसि कह्यौ हम तुम नहिं अंतर यह कहि के उन व्रज पठई । ,

       सूरदास प्रभु राधा माधव, व्रज – बिहार नित नई-नई ।

(३९) मो सम कौन कुटिल खलकामी

(४०) प्रभु मेरे अवगुन चित न धरो

(४१) जा दिन पंछी उड़ि जैहे

       ता दिन तेरे तन तरूवर कै सबै पात झरि जैहे

(४२) चरण-कमल बंदौ हरिराई

(४३) काहे को गोपीनाथ कहावत

(४४) मधुकर ! तुम रस लंपट लोग

(४५) बिन गुपाल बैरिन भई कुंजै

(४६) अति मलिन बृषभानु कुमारी

(47.) पिया बिनु सांपिनि कारि राति

(४८) निसि दिन बरसत नैन हमार

(४९) हम सो कहत कौन की बातें ?

(५०) आयो घोष बड़ो व्यापारी

(५१) उर में माखन चोर गड़े

       अब कैसहु निकसत नहिं ऊधो । तिरछे हवै जो अड़े।

(५२) काहे को रोकत मारग सुधो ?

(५३) आये जोग सिखावन पांडे

(5४) हम तो कान्ह केलि की भूखी

(५५) अंखियां हरि दरसन की भूखी

(५६) हमारे हरि हारिल की लकरी

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