बिहारी की प्रमुख पंक्तियां एवं कथन- Bihari ki Panktiya ev kathan UP TGT PGT EXAM 2022, Hindi sahitya

बिहारी की प्रमुख पंक्तियां एवं कथन- Bihari Panktiya ev kathan UP TGT PGT EXAM 2022, Hindi sahitya

बिहारीलाल के प्रसिद्ध दोहे पंक्तियां एवं कथन आदिकाल की प्रमुख पंक्तियां एवं कथन- Adikal Panktiya ev kathan UP TGT PGT EXAM 2022, Hindi sahitya- Most important for UP PGT TGT / NET JRF SLET UPSSESSB UPSSSC itc. Adikal ke prasiddh kavi evan unki panktiyan. 

 

                बिहारी की प्रसिद्ध पंक्तियाँ

(१) नहिं परगि नहिं मधुर मधु, नहिं विकास यहि काल ।   

      अली कली ही सो बध्यो, आगे कौन हवाल।।

(२) तंत्रीनाद कवित्त रस, सरस राग रति रंग ।

      अनबूड़े बूड़े तिरे, जे बूड़े सब अंग।।

(३) अंग-अंग नग जगमगति, दीप सिखा – सी देह |   

      दीया बुझाए हूँ रहै, बड़ो उजेरो गेह ।।

(४) रस सिंगार मंजन किये, कंजन मंजन दैन।

      अंजन रंजन हूं बिना, खंजन गंजन नैन।।

(५) केसरि कै सरि क्यों सकै, चंपक कितक अनूप ।   

      गात रूप लखि जात दूरि, जातरूप को रूप ।।

(६) अनियारे, दीरघ दृगनु किती न तरुनि समान ।

      वह चितवनि औरे कछू, जिहिं बस होत सुजान।।

(७) बतरस, लालच लाल की मुरली धरी लुकाइ ।

      सौंह करै, भौंहनि हँसे, दैन कहै, नटि जाइ । ।

(८) नासा मोरि नचाई दृग, करी काका की सौंह ।

      काँटे सी कसकै हिए, गड़ी कँटीली भौंह ॥

(९) छाले परिबे के डरन, सकै न हाथ छुवाइ ।   

     झिझकति हियै गुलाब कै, झवा झवावति पाइ ।।

 (१०) इत आवति चलि जात उत, चली छ सातक हाथ ।    

        चढ़ी हिंडोरे सी रहै, लगी उसासन हाथ ।।

(११) सीरे जतननि सिसिर ऋतु, सहि बिरहिनि तनताप।          

        बसिबै कौ ग्रीसम दिनन, परयो परोसिनि पाप । ।

 (१२) आड़े दै आले बसन, जाड़े हूँ की राति ।

        सासह कै कै नेहबस, सखी सबै ढिंग जाति ।।

(१३) दृग अरुझत् टूटत कुटुम, जुस्त चतुर चित प्रीति ।    

        परति गाँठ दुरजन हिए, दई नई यह रीति । ।

(१४) करे चाह सों चूटकि कै, खरै उड़ीहैं मैन।

        लाज नवाए तरफरत करत बूँद सी नैन।।

(१५) सघन कुंज छाया सुखद, सीतल मंद समीर ।

       मन जह्वै जात अजौं वहै है, वा यमुना के तीर ।।

(१६) यद्यपि सुंदर सुघर पुनि, सगुनौ दीपक नेह।

        तऊ प्रकास करै तितो, भरिए जितो सनेह ।

(१७) कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय।

       वह खाए बौराए नर, यह पाए बौराए ।।

(१८) तौ पर बारो उरबसी, सुनि राधिके सुजान।

        तू मोहन के उर बसी, ह्वै उरबसी समान ।।

(१९) लरिका लैवे के मिसनु लंगरु मो ढिग आइ ।

        गयौ अचानक गाँगुरी छाती छैल छुवाइ ||

(२०) कहत नटत रीझत खीझत मिलत खिलतलजियात    

       भरै भौन में करत हैं नैननि ही सों बात ।।

(२१) मेरी भव बाधा हरौ राधा नागरि सोय।

       जा तन की छाई परें स्याम हरित दुति होय ।।

(२२) अपने अंग के जानिकै जोबन नृपति प्रवीन ।

        स्तन मन नैन नितंग को बड़ो इजाफा कीन ।।

(२३) नहिं पराग नहिं मधुर मधु नहिं विकास इहिं काल   

        अली कली ही सौं बँध्यौ आगे कौन हवाल ।।

(२४) कागद पर लिखत न बनत, कहत संदेश लजात।   

         कहिहै, सब तेरो हियो, मेरे हिय की बात ।।

 

 

(२५) या अनुरागी चित्त की गति समुझे नहि कोय |

       ज्यौं ज्यौं बड़े स्याम रंग त्यौं त्यौं उज्ज्वल होय ।।

(२६) जपमाला छापा तिलक सरै न एकौ काम।

         मन काँचे नाँचै वृथा साँचै राँचै राम ।।

(२७) लाज गहौ बेकाज कत धेरि रहे घर जाहिं ।

        गोरस चाहत फिरत हौ गोरस चाहत नाहिं ||

(२८) कहा लड़ैते दृग करे परे लाल बेहाल।

        कहुँ मुरली कहुँ पीत पट कहूँ मुकुट बनमाल ||

(२९) जौ बाकै तन की दसा देख्यो चाहत आप।

       तौ बलि नैक बिलोकियै चलि औचक चुपचाप ।।

(३०) जस अपजस देखत नहीं देखत साँवल गात।

        कहा करौं लालच मरे चपल नैन चलि जात ।।

(३१) मोहन मूरति स्याम की अति अद्भुत गति जोय ।

       बसति सुचित – अंतर तऊ प्रतिबिंबित जग होय ।।

(३२) कीजै चित सोई तरे जिहिं पतितन के साथ।

       मेरे गुन- औगुन गननि गनौ न गोपीनाथ ।।

(३३) गिरि ते ऊँचे रसिक मन बूड़े जहाँ हजार ।

        वह्रै सदा पसु नरन कौं प्रेम-पयोधि पगार ।।

(३४) जिन दिन देखें वे कुसुम गई सु बीती बहार ।

       अब अलि रही गुलाब की अपत कंटीली डार ।।

(३५) सीस मुकुट कटि काछनी कर मुरली उर माल।   

        इहिं बानिक मो मन बसौ सदा बिहारी लाल ।।

( ३६ ) समै समै सुंदर सबै रूप करूप न कोय।

         मन की रूचि जेती जितै तित तेती रूचि होय ||

(३७) अरुन सरोरुह कर चरन दृग खंजन मुख चंद ।

        समय आय सुंदरि सरद काहि न करत अनंद ।।

(३८) चमचमात चंचल नयन बिच घूंघट पट झीन ।

       मानहू सुरसरिता विमल जल उछरत जुग मीन ।।

(३९) अपने-अपने मत लगे त्रादि मचावत सोर ।

        ज्यौं त्यौं सबहीं सेइबो एकै नंदकिशोर ।।

(४०) इन दुखिया अँखियान को सुख सिरजोई नाहिं।

       देखत बनै न देखते अनदेखे अकुलाहिं । ।

(४१) सोहत ओढ़े पीत पट स्याम सलोने गात ।

        मनौ नीलमनि-सैल पर आतम परयौ प्रभात ।।

(४२) बामा भामा कामिनी कहि बौलौ प्रानेस |

       प्यारी कहत लजात नहिं पावस चलत विदेस ||

(४३) पन्ना ही तिथि पाइए, वा घर के चहुँ पास।

        नित प्रति पून्योई रहै, आनन ओप उजास ।।

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