जायसी की प्रमुख पंक्तियां एवं कथन- Jaysi ki Panktiya ev kathan UP TGT PGT EXAM 2022, Hindi sahitya

जायसी की प्रमुख पंक्तियां एवं कथन- Jaysi ki Panktiya ev kathan UP TGT PGT EXAM 2022, Hindi sahitya

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जायसी की प्रसिद्ध पंक्तियाँ

जायसी कृत ‘पद्मावत’ की कुछ प्रसिद्ध पंक्तियाँ

(१) ” आदि अंत जसि कथ्था अहै, लिखि भाषा चौपाई कहै । ”

(२) औ मन जानि कवित्त अस कीन्हा,

      मकु यह रहे जगत महँ चीन्हा

(३) तन चितउर मन राजा कीन्हा ।

हिय सिंघल बुद्धि पदमिनी चीन्हा ।

गुरु सुवा जेहि पंथ देखावा ।

बिनु गुरु जगत को निरगुण पावा

नागमती यह दुनिया धंधा ।

वांचा सोइ न एहि चित बंधा ।

 

(४) प्रेम कथा एहि भांति विचारहु

     बूझि लेउ जो बूझै पारहु

(5.) सरवर तीर पद्मिनी आई। खोंपा छोरि केस मुकलाई ।।

(६) बरुनि बान अस ओपहँ, बेधे रन बन दाख।

     सौजहिं न सब रोवाँ, पंखिहि तन सब पाँख ।।

 

(७) ‘ओहि मिलान जो पहुँचै कोई। तब हम कहब पुरुष भल होई।

है आगे परबत कै बाटा। विषम पहार अगम सुठि घाटा |

बिच बिच नदी खोह और नारा। ठाँवहि ठाँव बैठ बदपारा ।।

 

(8.)छार उठाय लीन्ह एक मूँठी । दीन्ह उड़ाइ पिरिथिमी झूठी ॥

(९) मानुस प्रेम भयहु बैकुंठी, नाहित काह छार भइ मूँठी ॥’

(१०) मुहमद जीवन जल भरन रहँट घरी के रीति ।

       घरी सो आई ज्यों भरी ढरी जनम गा नीति ।।

 

(११) होतहि दरस परस था लोना ।

       धरती सरग भयउ सब सोना ।। ”

(१२) जासौं हौं चख हेरौ सोइ ठाउँ जिउ देइ ।

       एहि दुख कबहु न निसरौ को हत्या अस लेइ ||

(१३) साजन लेइ पठावा आयसु जाइ न भेंट।

       तन मन जोबन साजि कै देह चली लेइ भेंट।

(१४) फिरि फिरि रोइ कोइ नहि बोला ।

        आधी रात बिहंगम बोला ||

 

(१५) बरसै मघा झँकोरी झँकोरी ।

        मोर दोउ नैन चुवइ जनु ओरी ।।

 

(१६) उदधि आइ तेहि बंधन कीना ।

        इति दसमाथ अमर पद दीन्हा ||

(१७) कीन्हेसि कोई भिखारी कहि धनी ।

       कीन्हेसि संपति बिपति पुन धनी ॥

      काहू भोग भुगुति सुख सारा ।

       कहा काहू भूख भवन दुख भारा।।

 

(१८) पिउ सो कहहु संदेसड़ा हे भौंरा हे काग !

       सो धनि विरहे जरि मुई तेहिक धुआँ हम लाग।

 

(१९) जौहर भई इस्तिरी पुरुष गये संग्राम |

       पातसाहि गढ़ चूरा, चितउर भा इस्लाम।

 

(२०) नयन जो देखे कंवल भा, निरमर नीर सरीर

        हंसत जो देखे हंस भा, दसन जोति नग हीर

(२१) मुहम्मद यहि कहि जोरि सुनावा।

        सुना जो प्रेम पीर गा पावा ।।

 

(२२) जेई मुख देखा तेई हंसा

        सुना तो आये आंसु

(२३) कवि विआस रस कंवला पूरी ।

        दूरिहि निअर निअर भा दूरी ||

 

(२४) जेहि के बोल बिरह के धाया ।

       कहु केहि भूख कहाँ तेहि छाया । ।

 

(२५) पाट – महादेई । हिये न हारू ।

        समुझि जिऊ चित चेतु संभारू ।।

(२६) कुहुकि कुहुकि जस कोयल रोई ।

        रकत आंसू धुंधु बन कोई।।

 

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